Saturday, 24 March 2018

परीक्षा

"बताओ राम तुमने उस उद्दण्डी वराह को शब्द भेदी बाण से क्यों न समाप्त किया..क्यों उसे इतनी देर तक उत्पात मचाने दिया..लक्ष्मण आदि अन्य शिष्य अत्यन्त उत्सुक हैं कि आश्रम की इतनी अधिक हानि होने के पश्चात तुमने उसका वध किया..पहले क्यों नहीं" महर्षि वसिष्ठ ने कोमल स्वर में पूछा।

राम अपने स्थान से उठकर उनका अभिवादन करते हुए बोले "गुरुश्रेष्ठ के श्री चरणों में संध्या काल का प्रथम प्रणाम!..गुरुवर..अपराध के पश्चात ही दंड का विधान है ..पहले नहीं..और मर्यादा की भी यही पुकार थी...वराह भटकते हुए आश्रम में प्रविष्ट हुआ और हम मानवों की उपस्थिति के कारण अपनी मृत्यु के भय से वशीभूत होकर उग्रता से रेंक रहा था...मात्र इतने अपराध पे शब्द भेदी बाण का प्रयोग अनुचित होता..हाँ जब वो गुरु भ्राताओं पर आक्रमण कर उनके प्राण लेते मुझे दिखा तो उसका वध आवश्यक हो गया था...।"

गुरु वसिष्ठ संतुष्ट हुए परन्तु अन्य शिष्यों के ज्ञान वर्धन के लिए आगे पूछतें हैं "राम..मर्यादा क्या है?"

" गुरुश्रेष्ठ..यदि यह दुस्साहस संज्ञक न हो तो आप द्वारा प्रदत्त शिक्षा और ज्ञान में अपना विवेक समाहित कर कहता हूँ..सामान्य अर्थ में मर्यादा से तात्पर्य है लोक व्यवहार में प्रचलित नियमों और  मान्यताओं की सीमा के अंतर्गत किया गया आचरण परन्तु मर्यादा की विवेचना अत्यन्त विशाल है..शक्ति सम्पन्न होते हुए भी अपनी शक्ति को सीमा में रखना ही मर्यादा है.." राम ने अत्यंत विनम्र स्वर में कहा।

"शक्ति क्या है..राम..इसका मापन कैसे हो..क्या शक्ति सम्पन्न होते हुए भी मर्यादा में रहना कायरता न कहलाएगी?" वसिष्ठ आज मानो स्वयं को विराम दे राम को सांध्य वाचन का अवसर दे रहे थे।

ये प्रश्न सुनकर सूर्यवंशी राम के अधर स्वतः नवमी के चंद्र की तरह मुस्कुराने लगे  "अपने भीतर के किसी विशेष बल को अभ्यास द्वारा सिद्ध कर एक निश्चित मात्रा में संयोजित करने को शक्ति कहते हैं..इसका मापन संयम है...चरित्र संयम की इकाई है..गुरुवर.. इस सम्पूर्ण सृष्टि में प्रत्येक वस्तु दूसरे से शक्तिशाली अथवा क्षीण है..मानव से अधिक शक्तिशाली ये प्रकृति है..और इस प्रकृति का संचालक सूर्य है और इसी प्रकार उतरोत्तर अन्य तारे..आकाशगंगा आदि आदि हैं.. क्या सूर्य अपने ताप से इस पृथ्वी को भस्म नहीं कर सकता परन्तु वो मर्यादित रहता है..इसी प्रकार अनेक ग्रह अपनी अपनी मर्यादा में रहकर गतिमान हैं..ये विशाल ग्रह कभी भी अपनी सीमा को नहीं लाँघते.. मर्यादा तोड़ना तो क्षुद्र उल्काओं का कार्य है..अतः शक्ति सम्पन्न होते हुए भी अपनी मर्यादा में रहना 'पालन' है.. गुरुदेव.. कायरता नहीं।"

वसिष्ठ त्रेता में ही द्वापर की गीता को आत्मसात सा करते हुए बोले " आह! अद्भुत राम! मैं तुम्हें और सुनना चाहता हूँ..मर्यादा और कायरता का भेद और स्पष्ट करो"

"जिस प्रकार संसार के दुखों से पलायन तप नहीं है..उसी प्रकार शक्तिशाली शरीर और तीक्ष्ण बुद्धि के होते हुए भी कष्ट भोगना भी महानता नहीं है वरन कायरता है..परन्तु यदि यही कष्ट संसार की भलाई के लिए भोगे जाएं तो मर्यादा है.." राम अंत मे अपनी वाणी में रहस्य भर के चुप हुए जिसे सिर्फ वसिष्ठ भाँप सके "राम..मुझे प्रसन्नता है कि तुम्हें आगामी समय का भान है.. उस वराह को अभी गति नहीं प्राप्त होगी..परन्तु तुम्हारे बाण द्वारा मृत्यु को प्राप्त होने से वह प्रोन्नत अवश्य होगा और तुमसे पुनः भेंट करेगा"

राम ने आकाश में पुनर्वसु नक्षत्र की ओर देखा और रहस्मयी तथा भारी स्वर में बोले "गुरुश्रेष्ठ! प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया प्रकृति का विधान है..मैला खाने वाला यह वराह (शूकर) पुनर्जन्म लेकर मैले कुचैले वस्त्रों को स्वच्छ करने का कार्य करने वाला होकर पुनः मेरी परीक्षा लेने आएगा"

"सबकुछ जानकर भी अत्यंत संयमित रहने वाले हे रघुश्रेष्ठ!..राम!..संसार में तुम मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाने जाओगे!" वसिष्ठ ने आशीर्वाद मुद्रा में हस्त किया और भोजन के लिए इन शिष्यों की गुरुमाता अरुंधति से आग्रह किया।

~तुषार_सिंह #तुषारापात®

Friday, 23 March 2018

शहीद दिवस

कत्थे से नहीं लाल धरती उनके लहू से थी
पान की दुकां पे आज़ादी की गप्पें लड़ा रहे हैं

फाँसी का फंदा पहना था उन्होंने जिस उम्र में
उस उम्र में हम सिगरेट के छल्ले उड़ा रहे हैं

-तुषारापात®

Wednesday, 21 March 2018

फेमिनिस्ट

वो गुस्से से किचेन में गया
और अब तक जैसे
मेरी आवारा ख्वाहिशों को
रौंदता आया है
उबले आलूओं को मसल रहा है

कड़ाही को
कानों से उठा के
गैस के जलते चूल्हे पे दे पटकता है
मेरे दोनों काँधे पकड़ के
ऐसे ही तो रातों में मुझे झंझोड़ता रहा है

खूब सारा तेल डालके
जीरे की चटचटाहट से खुश हुआ
मगर मेरे सूखे खुले
बालों की लहलहाहट से
बड़ा छटपटाता है वो

प्याज लहसुन के जैसी
उसकी मुँह की दुर्गंध
कड़ाही से भी उठने लगी है अब
जली कटी उसकी बातों के दिए
जख्मों की तरह
प्याज गोल्डन ब्राउन से कुछ ज्यादा गहरा रहा है

धनिया के दो चम्मच कड़ाही में पड़े
मेरी हथेली की लकीरों पे मेहंदी से
उसके नाम की मोहर जड़ी गई थी
पूरे बदन पे हल्दी भी मली गई थी
गर्म कड़ाही में
थोड़ी सी अभी हल्दी छिड़की गई है

लाल मिर्ची की
एक बारीक सी लाइन
काली कड़ाही के बीचो बीच खींच देता है
सर पे मेरे खिंची
सिंदूर की लक्ष्मण रेखा याद दिलाके
मेरे ऑफिस के मर्दों से हुई
नार्मल सी बातें भी खूब चटपटी बना लेता है

आलू के भुर्ते को
इस छुंछुनाते मसाले में मिलाके
कलछुरि को कड़ाही में
जोर जोर से हिलाके
मेरे मुँह में जलते अंगारे ठूँसने की
अपनी तमन्ना पूरी कर रहा है

सारा पानी तो
मेरे अरमानों पे फेर चुका है
इसलिए सूखी सब्जी बन रही है
तेज डाँट से हड़काने के बाद
धीमी झिड़कियों से समझाता है
गैस तेज से धीमी की थी
और अब बंद हो चुकी है

शुरू के पहले या दूसरे
करवाचौथ पे लाई
एक सस्ती साड़ी की तरह
धनिया की पत्तियों से
इस सब्जी को सजा रहा है

सब्जी तैयार है और
फेमिनिस्ट कविता भी

नहीं नहीं
नमक बताना नहीं भूली मैं
वो तो अभी एक्सट्रीम फेमिनिस्ट्स के
कॉमेंट्स में भर भर के आएगा
थोड़ा सा
मेरी थाली की सब्जी के काम आएगा
बाकी
'उस' सब्जी बनाने वाले के ज़ख्मों पर जाएगा।

~तुषार सिंह #तुषारापात®

Monday, 19 March 2018

समाधान की उपपत्ति

"मतलब मैं ये मान लूँ कि मेडिकल साइंस के पास मेरा कोई इलाज नहीं है..सिवाय..इन नींद की गोलियों के" उसने मेडिकल रिपोर्ट्स को फाइल में लगभग ठूँसते हुए डॉक्टर से झुंझलाके कहा

सीनियर डॉक्टर विकल्प वर्मा व्यावसायिक मुस्कान चेहरे पे लाते हुए उससे बोले "वेल..मिस्टर समाधान मेडिकल साइंस किसी डिसीज का क्योर करती है..वहम का..अरर..अ..आपकी तो सारी रिपोर्ट्स नार्मल हैं..कहीं कोई ऐसी बात पकड़ में नहीं आयी जिससे पता चले कि आखिर क्यों आप सही से नींद नहीं ले पाते"

समाधान काफी समय से सही से सो नहीं पा रहा था ऑफिस से थका मांदा होने पर भी रात रात भर करवट बदलता रहता था ,गहरी नींद उसके लिए ऐसे हो गई थी जैसे गूलर का फूल,सुबह उठता था तो उसके पूरे बदन में दर्द रहता था उसकी ऐसी हालत देख के उसकी पत्नी उपपत्ति ने लगभग उसे धकेल के डॉक्टर के पास दिखाने भेजा था और तब से वो डॉक्टरों और उनकी तरह तरह की रिपोर्ट्स में उलझ के अब थक सा चुका था उसे समझ नहीं आ रहा था कि डॉक्टर उसकी इस छोटी सी बीमारी को पकड़ क्यों नहीं पा रहे हैं।

डॉक्टर विकल्प आगे बोले "देखिए एम आर आई तक मे कुछ नहीं आया..मुझे लगता है कि आपकी परेशानी फिजिकली न होकर मेंटली है...आप एक काम करिये किसी अच्छे साइकेट्रिस्ट को कंसल्ट करिये.. आप चाहें तो मैं आपको रेफर कर देता हूँ..यू मस्ट कंसल्ट टू डॉक्टर संकल्प.."

डॉक्टर से मनोचिकित्सक का नाम पता लेकर समाधान घर आता है और पत्नी उपपत्ति को सारी बात बताता है उपपत्ति उसकी बात सुन कहती है "अगर आप बुरा न माने तो एक बात कहूँ..वो कुंजी बुआ कह रहीं थीं..कि..कि..कहीं कोई ऊपरी बात तो नहीं.." उपपत्ति रुक कर पहले समाधान के चेहरे के भाव देखती है और पाती है कि वो ये बात सुनकर शांत है तो आगे की बात जल्दी जल्दी कह डालती है "  मैंने आपको पहले कभी बताया नहीं..कहा भी नहीं..पर आप जैसी परेशानियाँ मुझे भी होती रहीं हैं..शायद कोई बला वला हो..कुंजी बुआ बता रहीं थीं कि वो गुजरात में.. वो.. बाबा जी धाम है न..वहाँ.. वहाँ दर्शन करने से कैसी भी ऊपरी बाधा वगैरह हो..सब दूर हो जाती है..और वैसे भी आप पिछले पंद्रह सोलह साल से कहीं बाहर निकले भी नहीं हैं..इसी बहाने थोड़ी सैर.."

"उधर वो नालायक डॉक्टर कहता है कि मेरा दिमाग खराब है और इधर तुम कुंजी बुआ की अला बला बातें करके और दिमाग खराब कर रही हो..जाओ जरा चाय बना के लाओ..यार..क्या..क्या सुनना पड़ रहा है.." समाधान ने उसकी बात बीच में काटी और जूते मोजे उतार के हाथ मुँह धोने चला गया।

फिर कुछ महीने मनोचिकित्सक डॉक्टर संकल्प की संकल्पनाओं में समाधान फँसा रहा,मनोचिकित्सक ने उसकी नींद की दवा बंद करवा कर उससे तमाम बातें पूछीं कि कोई कर्ज़ की चिन्ता तो नहीं,रुपया पैसा फँसा होना,कोई सदमा, पुरानी बातें,कोई अधूरी इच्छा,अधूरा इश्क, मकान गाड़ी खरीदने या बेचने का या उससे जुड़ा कोई झंझट, बच्चों के भविष्य की चिंता, ऑफिस में कोई प्रेम प्रसंग,प्रोमोशन डिमोशन का खेल, नामर्दी, शीघ्रपतन आदि आदि ऐसी अनेकों बातों का जवाब जब नहीं में आया तो साइकेट्रिस्ट ने उसे अच्छी नींद लेने के कई तरीके सुझाए पर कोई उपाय काम नहीं आया और तब तक कुंजी बुआ का दबाव भी उसपर काफी हो चुका था तो समाधान को ऊपर नीचे की अलाएं बलाएं न मानते हुए भी उपपत्ति के साथ बाबा जी धाम जाना पड़ ही गया।

बाबा जी धाम वो लोग रात आठ बजे के आसपास पहुँचे थे तब तक दर्शनों का समय समाप्त हो चुका था समाधान ने पहले से ही धाम के पास के एक होटल में कमरा बुक करवा लिया था प्लान ये था कि रात भर आराम करके सुबह सुबह दर्शन आदि कर लिए जाएंगे।

होटल के कमरे में समाधान और उपपत्ति फ्रेश हुए और रूम सर्विस को फोन कर खाना आर्डर किया और लेट के खाना आने का इंतजार करने लगे बीस पच्चीस मिनट के बाद खाना आया सर्विस बॉय ने बेल बजाई तो उपपत्ति ने समाधान से कहा " देखिए शायद खाना आ गया है.. दरवाजे पे कोई है.." उपपत्ति की बात पर समाधान की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसे आश्चर्य हुआ उसने एक बार और कहा पर इस बार भी कोई प्रतिक्रिया नहीं,बेड के दूसरी ओर आकर उसने जब देखा तो पाया कि समाधान गहरी नींद में सो रहा है और हल्के हल्के खर्राटे भी ले रहा है  उसने पहले तो सर्विस बॉय से खाना लेकर उसे चलता किया और फिर से समाधान को सोते हुए देखने लगी, उपपत्ति की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था, उसने मन मे सोचा कि कुंजी बुआ ने क्या खूब जगह बताई कि धाम से एक डेढ़ किलोमीटर दूर ही इनपे इतना असर हुआ है, उसने समाधान को सोने दिया और थोड़ा बहुत खाना खाकर वो भी लेट गई।

सुबह के दस बजे नहा धोकर तैयार हुई उपपत्ति समाधान को खुशी खुशी जगा रही थी "उठो भी कितना सोएंगे..दर्शनों को भी तो चलना है..चाय भी आ गई है.. उठ जाइये.."

समाधान अँगड़ाई लेते हुए उठता है और चौंक के कहता है "अरे ये कैसे..मैं इतनी देर तक..सोता..कैसे सोता रहा..खाना..खाया..अरे आज तो बदन दर्द भी न के बराबर है.."

उपपत्ति उसे चाय की प्याली देते हुए कहती है "सब धाम का चमत्कार है..चलिए अब जल्दी से नहा लीजिये"

समाधान उसके हाथ से चाय की प्याली लेकर एक ओर रख थोड़ी देर कुछ सोचता है और फिर अचानक से बेड से उतर के पलंग पे बिछी चादर हटा के कुछ ढूँढने लगता है उपपत्ति उसे ऐसा करते देख कहती है "अरे..अरे..अब ये क्या करने लगे..चलो भी..चाय पीकर..तैयार हो जाओ..देर हो रही है दर्शन के लिए चलना है"

"अब यहाँ तक आए हैं तो चल भी लेंगे ..पर..अब दर्शन करने की जरूरत नहीं रही..वैसे अगर तुम पहले मुझे बता देतीं कि तुम्हें भी सही से नींद नहीं आती थी तो यहाँ तक भी आना नहीं पड़ता" समाधान रहस्मयी ढंग से मुस्कुरा के उससे कहता है और पलंग पे बिछे गद्दे की कंपनी का नाम अपने मोबाइल में नोट करने लगता है।

यदि समाधान के साथ उपपत्ति का भी ज्ञान हो तो किसी कुंजी की आवश्यकता नहीं पड़ती।

~तुषार सिंह #तुषारापात®

Sunday, 18 March 2018

नव संवत्सर

ज्यूँ चैत अमावस बीत गई
हाड़ माँस कंपित शीत गई
धरती ने ओढ़ा अम्बर नया
सृष्टि घोषित नव संवत्सर भया
अब भय कैसा कैसी विपदा
ये चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा
हे भारतवर्ष! अब हर्ष कर!
नववर्ष कर ! नव वर्ष कर!

#तुषारापात®

Friday, 16 March 2018

आधुनिक हिचकी

मिस्ड कॉल आधुनिक हिचकी है।

~तुषारापात®

Wednesday, 14 March 2018

जिंदगी


नई कहानी,न नए किरदार बनाने देती है
जिंदगी भारी है बहुत कहाँ कलम उठाने देती है

#तुषारापात®

Monday, 12 March 2018

ख़ुदा खानाबदोश है


"उसके लिए..उसके लिए..ये गुम्बदौ-मीनारें बनाने से क्या फायदा.. उसको अगर यहाँ रहना ही होता..या कभी कभार आना भी होता..तो वो ये सब कुछ बनाने से पहले..अपना घर ऑफिस वगैरह..अपनी मर्जी का अपने हिसाब का..यहाँ न बनाता?...साफ मतलब है..वो यहाँ रहना ही नहीं चाहता था...सोचो जरा..पूरी दुनिया बनाने वाला अपना घर बनाने का ज़िम्मा हमें..मतलब..हम नौसिखियों को सौंपेगा? ..जनाब ख़ुदा खानाबदोश है..ठिया ठिकाना नहीं रखता..वो तो बस हमारे जैसे न जाने कितनों के ठिकाने बनाता जाता है..आगे बढ़ता जाता है...वो अब जब वापस आएगा तो अपनी ज़मीन वापस खींचने आएगा...तब तक हम सब ख़ाक होके अपनी खाल इस जमीं में मिला चुके होंगे.. न न भाई..मेरी तौबा..उसका घर बनाने में अगर कुछ ऊँच नीच हो गई..तो वो हमें फिर से ज़िन्दा करके..हमारी  ज़िन्दा खालें खींचेगा..।"

नाटक 'ख़ुदा खानाबदोश है' से एक अंश।
~तुषारापात®

खानाबदोश

तुम बनाते रहो उसके लिए खूब गुम्बदो-मीनारें
ख़ुदा खानाबदोश है ठिया ठिकाना नहीं रखता

#तुषारापात®

Sunday, 11 March 2018

प्रोफाइल

तुम्हारी प्रोफाइल देखी
और देखीं कई ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें वहाँ
तुम्हारे भीतर का सुनहरा अँधेरा दीप्त था

तुम्हारी प्रोफाइल देखी
और देखीं कई सारी रचनाएँ तुम्हारी
कलम किसी पशोपेश में शायद लिप्त था

तुम्हारी प्रोफाइल देखी
और देखीं कई कवियों की कविताएं वहाँ
न जाने क्यों कलाकारों का वो डेरा सुप्त था

तुम्हारी प्रोफाइल देखी
और जागी तुम्हारी वाल पे आने की प्यास
मैं अपने प्रशंसकों से अब तक तो तृप्त था

~तुषारापात®

गुलाबी इतवार

दिले नादां,बचपने वाला ढूँढता है क्यूँ,अब तो तेरी जवानी है
इतवार की लाली उड़ गई तो क्या,रंगत अब इसकी गुलाबी है

वक्त की धूप,जिंदगी के रंग फीके कर गई,ये आम कहानी है

~तुषारापात®

Saturday, 10 March 2018

नजर के तीर, आँखों के धनुष और लटों की डोरी

ये तो
तुम जानते ही होगे
कि
धनुष की डोरी
खींचने और छोड़ने से
तीर
निशाने पे जा लगते हैं
और ये भी
सब जानते ही हैं
कि
आँख के धनुष से
छोड़े गए
नजर के टेढ़े तीर भी
दिलों पे सीधे सीधे लगते हैं
मगर
क्या तुम ये जानते हो
कि
नजर के तीर भला
किस डोरी से चलते हैं
अभी अभी
दिल मेरा
ताजा ताजा
निशाना बना है
मेरे सामने बैठी उसने
बार बार
चेहरे पे आतीं
अपनी लटें
कानों पे चढ़ा के
हर बार मुझे देखा है।

~तुषारापात®

जायदाद

मेरी जायदाद बढ़ने के मशहूर किस्से हुए
मेरे तीन बेटे थे मेरे घर के चार हिस्से हुए

~तुषारापात®

मुक़द्दर की जलेबियाँ-हथेलियाँ

जब भी चूमा है हथेली को ये कसैली लगी है
मौला तूने कैसी ये मुक़द्दर की जलेबी लिखी है

~तुषारापात®

जिंदगी का जूता

नंगे पैर आते हैं हम नंगे पैर जाते हैं
पर ज़िंदगी तेरे जूते बहुत काटते हैं

~तुषारापात®

चाय की प्याली

मेरे
बाएं कान में
अपने दाएं हाथ की
उंगलियाँ फँसा के
वो
हौले हौले
छू रहा है मुझे
चाय की प्याली की तरह

~तुषारापात®

Friday, 9 March 2018

चुंगी

आँखों की चुंगियाँ बंद करके
आओ ख़्वाबों की तस्करी करें

~तुषारापात®

Monday, 5 March 2018

काली सफेद

उड़ गए हैं सारे रंग इस बरस भी होली में
जिंदगी फिर काली सफेद है फिर वही शतरंज की बिसात है।

-तुषारापात®