Thursday 10 November 2016

श्याम धन पायो


"सुनो! सुनो! सुनोSSSS....महाराज के आदेश से! आज मध्यरात्रि से! वर्तमान में प्रचलित सभी मुद्राएं! अमान्य कर दी गई हैं! सभी नागरिकों को यह आदेश दिया जाता है...कि आगामी भोर...और देव प्रबोधिनी एकादशी संध्याकाल तक की मध्यावधि में अपनी समस्त मुद्राओं के नवीनीकरण हेतु राजकोषागर से संपर्क करेंSSS....सुनो! सुनोSSSS......." इस नगर ढिंढोरे से सभी नागरिकों,छोटे बड़े समस्त व्यापारियों में हलचल मच गई..सम्पूर्ण प्रजा सकते में आ गई पग पग पर व्यक्तियों के समूह आकस्मिक हुई इस राजाज्ञा का अर्थ समझने का प्रयास करने लगे कुछ फक्कड़ मलंग व्यक्ति कोरी प्रसन्नता में धनीकों का उपहास करते भी दिख रहे थे कुल मिलाकर चहुँओर कोलाहल था भय व कौतूहलता सभी के मुख मंडल पर छाई थी।

अगले दिवस राज्यसभा लगी समस्त मंत्रीगण और राज्य के प्रतिष्ठित वैश्य वर्ग के प्रतिनिधि वहाँ विराजमान थे विमुद्रिकरण की इस राजाज्ञा से अचंभित सभी मझले व लघु उद्योग व्यापारी भी राजसभा में उपस्थित थे संभवतः नगर के समस्त नागरिक भी राजा के वचनों को सुनने आये थे राजा ने उच्च स्वर में औपचारिक सूचना आरम्भ की "राज्य में..अवैध मुद्रा का प्रचलन अधिक होता गया है जिसके परिणाम स्वरूप महंगाई में वृद्धि, आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता का संकट गहराता जा रहा है.. तथा धनिकों के पास बिना कर भुगतान की बहुत सारी चल संपति संग्रहित होती जा रही है...अतः इस संकट से अर्थव्यवस्था को उबारने हेतु ये कठोर निर्णय राज्य पर आरोपित हुआ है" सबने सुना अधिकतर सहमत हुए जो नहीं भी सहमत थे वो राजाज्ञा के सामने विवश थे सभी साधारण-विशिष्ट व्यक्ति मुद्रा नवीनीकरण नीति को समझने लगे जिसका विस्तृत वर्णन राजा की आज्ञा प्राप्त होते ही कोषागार मंत्री महोदय सभा को कर रहे थे।

मंत्री की नीति सुनकर समस्त प्रजा को पूर्ण विश्वास हो गया कि अब काला धन और अवैध मुद्रा का अस्तित्व न रहेगा परन्तु पट के पार्श्व में भी कई क्रीड़ाएं होती हैं जो दर्शकों को दृश्य नहीं होतीं।

उसी राज्य में एक अत्यन्त प्रभावशाली बहुत ही धनी और चतुर व्यापारी था उसके अधिकार में राज्य की एक मात्र नदी आती थी जिसके जल का वह व्यापार करता था और इस व्यापार के कर का भुगतान समय से राजकोष में कर देता था। यद्यपि उस विशाल राज्य में कई ताल और नम भूमि क्षेत्र थे जिसमें जल उपलब्ध रहता था तथा उनपर कई अन्य छोटे व्यापारियों का अधिकार था परंतु वह ताल पोखर इत्यादि का जल दूषित होता था ,उस राज्य में यही परम्परा थी वहाँ जल का विपणन उच्च मूल्य पर होता था उसपर नदी के जल का मूल्य सर्वाधिक हुआ करता था।

इस मुद्रा के अप्रचलन की घोषणा के लगभग तीन मास पहले चतुर व्यापारी ने अपने अधिकार में आने वाली नदी से सभी नागरिकों को किसी भी मात्रा में जल वो भी बिना किसी मूल्य किसी शुल्क के ले जाने की अत्यंत कल्याण कारी योजना का आरम्भ किया परन्तु उसकी अवधि योजना आरम्भ की तिथि से मात्र तीन मास तक ही थी उसके उपरांत प्रत्येक नागरिक व्यापारी को मूल्य चुकाकर ही जल प्राप्त कर सकेगा इस नियम का उल्लेख भी उसके द्वारा किया गया।

जल ले जाने के लिए प्रत्येक नागरिक को उस व्यापारी द्वारा विशाल कुम्भ भी नि:शुल्क वितरित किये गए यहाँ तक की अगर कुंभ फूट जाता (जो कि प्रायः होता ही था क्योंकि मृदापात्र थे) तो नि:शुल्क नया पात्र उस नागरिक को व्यापारी द्वारा प्रदान किया जाता था चहुँओर उस देवता स्वरूप व्यापारी का गुणगान हो रहा था।

अब तीन मास पूर्ण हो चुके थे उस व्यापारी की नि:शुल्क जल योजना का समापन आज हो चुका था और गत दिवस से मुद्रा का नवीनीकरण भी किया जा चुका था अब नगर वासियों को नवीन मुद्रा द्वारा व्यापारी के द्वारा तय किये गए उच्च मूल्य पर जल क्रय करना होता था साथ ही व्यापारी की नीति ये भी थी कि उसके यहाँ से लिये पात्र में ही जल का विक्रय होगा उस पात्र का मूल्य भी वही निर्धारित करता था जो कि सामान्य से बहुत अधिक था राज्य के निवासी जल जैसे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक पदार्थ को पहले से बहुत अधिक मूल्य पर उस व्यापारी से क्रय करने को विवश हो गए।

उस व्यापारी का समस्त श्याम धन अब श्वेत हो रहा था क्योंकि उसने अपनी समस्त पुरानी मुद्रा को योजना लागू करने में समाप्त कर दिया था और अब उसे नवीन मुद्रा की प्राप्ति हो रही थी जिसपर वो कर भी चुका रहा था। उधर सामान्य नागरिक,श्रमिक वर्ग, कृषक आदि मुद्रा नवीनीकरण के जटिल नियमों तले दबे हुए थे खुदरा व्यापार ठप होने से लघु व्यापारियों के हस्त से समस्त व्यापार निकलता जा रहा था समस्त लघु-वृहद व्यापार क्षेत्र पर बड़े व्यापारियों का अतिक्रमण हो रहा था।

राजा ने जो नवीन मुद्रा का प्रचलन आरम्भ करवाया था वह पिछली मौद्रिक इकाई से अधिक इकाई की थी इससे अवैध मुद्रा बनाने वालों को भी पहले से अधिक लाभ होने लगा यद्यपि राजा के विश्वासपात्र कर्मचारियों ने प्रजा में यह डर बिठाया था कि नवीन मुद्रा के प्रत्येक सिक्के पर राजा के आदेश से राजपुरोहित ने एक राक्षसी को सूक्ष्म रूप में अभिमंत्रित कर दिया है जो सिक्कों के अवैध प्रतिरूप बनाने वालों को खा जायेगी परन्तु इसके बाद भी अवैध सिक्के बनते रहे।

आर्श्चयजनक रूप से राज्य के सभी मंत्री व प्रमुख धनिकों के द्वारा प्राचीन मुद्रा बहुत कम मात्रा में प्रदर्शित की गई परंतु उनके पास राज्य की अथाह भूमि और स्वर्ण धातु के भंडार थे जो वो अब विक्रय कर नवीन मुद्रा से अपने अपने कोष पुष्ट कर रहे थे और कर का भुगतान भी कर रहे थे।

राजा बढे हुए कर से प्रसन्न था,राज्य के मंत्री तथा प्रमुख व्यापारी भी अत्यन्त प्रसन्न थे उनके पास अब लेशमात्र भी काला धन नहीं था,राज्य से काला धन व अवैध मुद्रा दूर करने की ये महत्वाकांक्षी योजना राजा के अनुसार सफल रही थी।

देव जाग चुके थे परंतु उनकी योगनिद्रा का लाभ उठा कर लक्ष्मी जी के सिक्कों का रूपांतरण हो चुका था।

-तुषारापात®™

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