यह मानव का आदिम गुण है कि वह स्वयं को सदैव केंद्र में रखने का प्रयास करता है, वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति पहले से ही ब्रह्माण्ड का केंद्र है क्योंकि किसी गोलाकार वस्तु का हर बिंदु उसका केंद्र होता है।
मनुष्य का स्वयं को केंद्र में स्थापित करने का प्रयत्न वास्तव में उसकी स्वयं की काल्पनिक परिधि का आविष्कार करना है, इसके लिये वह नित्य नयी नयी त्रिज्यायें (आकांक्षायें) खींचता रहता है। यदि वह इन परिधियों का निर्माण करना छोड़ दे अर्थात अपने चारों ओर के व्यक्तियों से अपेक्षायें रखना समाप्त कर दे तो वह जान जाता है कि वह इस लघु जीवनवृत्त का नहीं बल्कि ब्रह्माण्ड का केंद्र है।
~#तुषारापात
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