Saturday, 30 September 2017

घर का भेदी लंका ढाए

"तो तुम्हें लगता है लक्ष्मण...मैंने अहंकार में आकर राम से युद्ध किया" नाभि में रामबाण लिए रावण मृत्युशय्या पे पड़े पड़े बोला

"हाँ रावण तेरे अहंकार ने ही तुझे ये गति दी..वो तो भइया ने मुझे आदेश दिया तुझसे ज्ञान प्राप्त करने का...वरना मैं तेरे अंतिम समय में भी तेरे पास न आता" लक्ष्मण ने अपने जगप्रसिद्ध क्रोध के साथ उत्तर दिया

रावण ने हँसते हुए कहा "जिसने नौ ग्रहों को अपने वश में कर रखा था...जिसने 1000 वर्ष तक इस धरा,आकाश और पाताल पे राज किया..और जिसने श्री हरि विष्णु को अवतार लेने पर विवश कर दिया वो रावण अहंकारी है..तो क्या..मेरे पुत्र इंद्रजीत के नाग पाश से पराजित व्यक्ति को  इतना अहंकार शोभा देता है?"

रावण की बात सुन लक्ष्मण कुछ लज्जित हुए,राम के वचनों को याद कर उन्होंने कुछ कहना उचित न समझा रावण ने अपने चरणों की ओर खड़े लक्ष्मण को देखा और विनम्र स्वर में आगे कहने लगा " लक्ष्मण इस संसार में सदैव याद रखने योग्य तथ्य ये हैं कि अपने भेद यदि किसी को दिए हैं तो उसे कभी अपने से दूर मत रखो..दूसरा कभी इन ग्रहों को साधने का प्रयास मत करना..यदि नौ के नौ ग्रह तुमने साध रखे हैं..तब कोई ऐसी प्रचंड ईश्वरीय शक्ति तुम पर आक्रमण करेगी कि तुम्हारा कोई शस्त्र उस को काट न सकेगा..इसलिए हे लक्ष्मण! काल के परे जाना है तो काल के साथ बहो..अपने शत्रु को सदैव बड़ा मानकर उसे छोटा बनाओ..ये अपने भ्राता राम से सीखो..और हे लक्ष्मण कभी भी स्त्री का अपमान मत करो क्योंकि यदि गाय में समस्त देवता वास करते हैं तो स्त्री में समस्त देवताओं की शक्तियाँ निवास करती हैं.." इस तरह रावण ने लक्ष्मण को सामाजिक राजनीतिक कई नीति वचन सुनाए

सबकुछ सुनकर लक्ष्मण बोले "मुझे आश्चर्य है कि इतने ज्ञानी होने पर भी आपने श्री राम से युद्ध किया..और मृत्यु को गले लगाया"

"हाँ मैंने राम से युद्ध किया..क्योंकि मैं अमर होना चाहता था" रावण ने रहस्यमयी स्वर में अपना अंतिम भेद लक्ष्मण पर प्रकट किया

लक्ष्मण और अधिक आश्चर्य से बोले "अमर होना चाहते थे..परन्तु आप तो पहले से ही अमर थे.."

"इतने वर्षों से इस संसार पे शाषन करते हुए मैंने जीवन के समस्त सुख भोगे..अपने ही सामने...न जाने कितने ही अपने पुत्र पुत्रियों भ्राताओं को मृत्यु को प्राप्त होते देखा..ये जो आज मेरे अनुज हैं मेरे पिता तुल्य व्यक्तियों की संतानें हैं..मैं अब विराम चाहता था..इस धरा पे कोई नहीं था और न ही कोई स्वर्ग और पाताल में था जो मुझे पराजित कर सकता था..इसलिए मैंने जगत के पालनहार से बैर लिया..इतना अहंकार का स्वांग किया कि उन्हें मेरा अहंकार तोड़ने आना ही पड़ा..परन्तु मैं चाहकर भी अपनी इस अमरता को खोना नहीं चाहता था.." रावण ने दर्द से कराहते हुए कहा

लक्ष्मण ने उत्सुकतावश शीघ्रता से पूछा " अमर होते हुए भी अमर होने के लिए मृत्यु का आलिंगन मुझे समझ नहीं आया"

"लक्ष्मण..इतने वर्षों में शिव साधना से मैं जान चुका था कि मेरी यह सांसारिक अमरता किसी न किसी क्षण समाप्तअवश्य होगी.. मेरी नाभि का ये अमृत मुझे सदा के लिए अमर नहीं रख सकता था.. परन्तु मेरी नाभि में उतरा हुआ ये रामबाण मुझे सदा के लिए अमर कर देगा...लक्ष्मण राम के साथ अब रावण अमर है राम की चर्चा रावण के बिना कभी पूर्ण नहीं होगी..और ऐसा करके मैंने विभीषण को दिए अपने भेद के प्रकट होने के भय से भी मुक्ति पा ली..अब मैं अमर हूँ.. मेरा कोई भेदी नहीं..ये अमृत लिए हुए अब विश्रामावस्था में चला जाऊँगा" रावण ने अत्यंत सुख से ये वचन कहे

लक्ष्मण ने उसको प्रणाम करते हुए कहा "हे महाज्ञानी..अब तो आपको सर्वोच्च विश्राम अर्थात मोक्ष प्राप्त होगा..आप श्री हरि के हाथों पुरस्कृत हुए हैं"

"हा हा हा! लक्ष्मण..जानते हो..मेरे अंतिम समय में राम ने मेरे अनुज विभीषण को न भेजकर अपने अनुज को मेरे समीप क्यों भेजा इसी में ये रहस्य छुपा है..कि मुझे कभी मोक्ष प्राप्त नहीं होगा..विभीषण अपना पश्चाताप न कर सका उसपर मेरी मृत्यु का ऋण है..जब तक इस संसार में ये कहावत ..घर का भेदी लंका ढाए..रहेगी तब तक इस रावण को मोक्ष नहीं मिलेगा अर्थात घरों में जब तक आपसी फूट रहेगी अहंकार को कभी मोक्ष नहीं मिलेगा" रावण संभवतः अपना अंतिम अठ्ठाहस कर रहा था परंतु इस अठ्ठाहस की प्रतिध्वनि प्रत्येक विजयदशमी पे गूँजने वाली थी।

-तुषारापात®

Wednesday, 27 September 2017

छोड़ो ग़ज़ल की बहर रखना

तेरे जाने के बाद सूनी राह पर यूँ मेरा नजर रखना
कि मुसाफ़िर है रुका और मंजिल का सफर करना

वो किसी और मुल्क का बाशिंदा था चल दिया
तो अपने दिल में क्यूँ उसका पूरा शहर रखना

चले जाते हैं जिन्हें सुनाते हो हाले दिल बेबाकी से
इस बार बात रखना तो थोड़ा अगर मगर रखना

पिछली दफा कहा था उसने कि बड़े नासमझ हो
इस बार उनकी अंगड़ाइयों पर मत सबर रखना

के जिसके फेंके टुकड़ों पे बस्तियाँ बस जाती हैं
उसे ठुकराया है तुमने तो अच्छे से बसर करना

ये धड़कनो का हिसाब एक सा कब रहा 'तुषार'
दिल की बात कहो छोड़ो ग़ज़ल की बहर रखना

-तुषारापात®

Monday, 25 September 2017

सुर्ख आयतें

इतनी रातों से वो तुझसे माँगता है दुआ
उसकी आँखों मे सुर्ख आयतें उतर आई हैं ख़ुदा

-तुषारापात®

Sunday, 24 September 2017

तुम करार दो

तुम करार दो
अब न इंतज़ार हो
तुम करार दो

वो सुबह तो आए तारों की छाँव में
तुम विदा करा ले जाओ अपने गाँव में
मैं कुँवारी माटी तुम कुम्हार हो
अब न इंतज़ार हो

तुम करार दो

चाँद की अंगीठी पे ख्वाब के पतीले
भाप चाँदनी की करे नयन गीले
बिगड़ी रात को मेरी अब संवार दो
अब न इंतज़ार हो

तुम करार दो

कबसे जल रही थी मैं इस आग में
कोई चिंगारी नहीं अब राख में
मेरे भगीरथ तुम गंगा उतार दो
अब न इंतज़ार हो

तुम करार दो..............

#तुम_पुकार_लो #फीमेल_वर्जन
-तुषारापात®

Friday, 22 September 2017

मिली

बड़ी मिली जुली है ये जिंदगी जिंदगी
है उलझी कहीं तो कभी सुलझी सुलझी

कभी उड़ती रेत सी,बड़ी सूखी प्यासी
आँसूओं को पीती
कभी तर होकर,मन को बो कर
नई उमंगें जीती
कई रूप हैं,धूप है बदली बदली

बड़ी मिली जुली है ये जिंदगी जिंदगी....

कभी मैं ना जीती,कहीं न मैं हारी
पड़े पासे जैसे
इसके भंवर में , हथेली के चौसर पे
बिछे तारे ऐसे
बाजी है किस्मत की ये लगी लगी न लगी।

बड़ी मिली जुली है ये जिंदगी जिंदगी .....

#बड़ी_सूनी_सूनी_है(फीमेल_वर्जन) #मिली
-तुषारापात®

Thursday, 21 September 2017

नवरात्र

उत्तर को छोड़ दक्षिण गोल के होंगें यात्री
सूर्य अपने रथ पे लिए शारदीय नवरात्रि

#तुषारापात®

Friday, 15 September 2017

सुबह का सूरज

वो अकेले में रोता है और तुम्हारे सामने मुस्कुराता है
रात कैसी बीती ये सुबह का सूरज कभी नहीं बताता है

-तुषारापात®

Saturday, 9 September 2017

उँगलियाँ तेरी मेरी उँगलियों में उलझीं

उँगलियाँ तेरी मेरी उँगलियों में उलझीं
साँसों के तेरे ज़ोर से ज़ुल्फ़ें मेरी सुलझीं

लाल डिब्बे में अब एक हुआ अपना पता
लबों पे मेरे लगा के अपने होठों की मुहर
इश्क की चिट्ठियाँ तूने बदन पे लिक्खीं

उँगलियाँ तेरी मेरी उँगलियों में उलझीं.....

धड़कनों के शोर से नहीं जागे हैं ये
उनींदे अरमानों की नींद टूटी है आज
चूड़ियाँ कलाइयों में हैं बार बार खनकीं

उँगलियाँ तेरी मेरी उँगलियों में उलझीं.....

कोई खतरे का नहीं है अब नामोंनिशाँ
लाँघ जाऊँ जो तेरे साथ लाज की रेखा
माँग में एक,गाल पे कई लाल रेखाएं हैं चमकीं

उँगलियाँ तेरी मेरी उँगलियों में उलझीं.....

सितारे मिलते हैं सितारों से मुश्किल से
मोम के ये टुकड़े आसमाँ में जो चमकते
मन्नतों की शमाएँ हैं जो थीं कभी पिघलीं

उँगलियाँ तेरी मेरी उँगलियों में उलझीं
साँसों के तेरे ज़ोर से ज़ुल्फ़ें मेरी सुलझीं

-तुषारापात®

Monday, 4 September 2017

पश्चिम का सूर्योदय

"शर्मा..बहुत बड़ी नादानी कर रहे हो...रिटायर हो चुके हो..यहीं रहो ये सब कुछ बेचके..कहाँ अपने लड़के के पास जा रहे हो..." गुप्ता जी ने अपने चालीस साल पुराने दोस्त शर्मा के इलाहाबाद से दिल्ली शिफ्ट होने के फैसले पे ऐतराज जताते हुए कहा

शर्मा जी मुस्कुराए और बोले "भाई गुप्ता..बच्चों के बगैर दिल नहीं लगता...जिंदगी के पूरे दिन तो उन्हें पालने पोसने में लगा दिए..अब जिंदगी की आखिरी कुछ शामें बच्चों और उनके बच्चों के साथ भी न बिताने को मिले तो क्या फायदा..वैसे भी अब हम और तुम्हारी भाभी दिन पर दिन कमजोर हो रहे हैं..बेटे के पास रहेंगे तो वो खयाल रखेगा रात बिरात दवा दारू के लिए भागना अब मुझसे नहीं हो पाता"

"भूल गए वो रमन लाल का क्या हश्र किया था उसके बेटे और बहू ने...वो भी तुम्हारी तरह सब कुछ बेच के गया था...खाली हाथ लौटा और अब दोनों बुढ्ढे बुढ़िया यहीं किराए पे रह रहे हैं" गुप्ता ने तीखे स्वर में ऐसे कहा मानो उन्हें कोई अपना पुराना जख्म याद आ गया हो

"नहीं भाई गुप्ता...मेरा बेटा ऐसा नहीं है...पता है जब उसकी नौकरी इंफोसिस में लगी थी...उसने हमारे पैर छूते हुए कहा था कि पापा..मम्मी ये आप लोगों के कारण ही मैं आज यहाँ पहुँचा हूँ..और मैं ये बात कभी भूल नहीं सकता कि आप लोगों ने कितनी तकलीफों से मुझे पाला है...गुप्ता..वो और मेरी बहू बहुत अच्छे हैं मुझे यकीन है वो हमारा ख्याल अच्छे से रखेंगे.." शर्मा जी थोड़ा भावुक होते हुए बोले

गुप्ता ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा "मुगालते में हो शर्मा..ये आजकल के लड़के..बहुएं..माँ बाप को नौकर बना के रखते हैं...ऐसी बेतुकी बाते तुम मुझसे तो मत ही करो..अक्ल से काम लो..तुम पश्चिम में सूरज उदय होने जैसी बात कर रहे हो..पछताओगे एक दिन.."

"ठीक है यार कुछ हुआ तो तेरा घर तो रहेगा ही मेरे लिए..वैसे ये मेरे बेटे की नहीं..मेरे दिए संस्कारों की परीक्षा है..अब देखना है कि क्या मैं इसमें पास होता हूँ या फिर..." शर्मा जी गुप्ता से गले लगते हुए भावुक स्वर में बोले और फिर अपनी पत्नी के साथ दिल्ली के लिए निकल गए

आज शर्मा जी को दिल्ली आए एक साल हो गया है उनके बेटे बहू दोनों जॉब करते हैं..वे दोनों अपनी अपनी कंपनी में बहुत ऊँची पोस्ट पे पहुँच चुके हैं...शर्मा और उनकी पत्नी घर मे अपने  पोते के साथ खेलते जिंदगी की शामें सुख से बिता रहे हैं

"पापा..एक खुशखबरी है..मुझे कंपनी से बहुत बड़ा ऑफर मिला है..मैं अपनी कंपनी से छः महीने के लिए अमेरिका जा रहा हूँ...आई टी इंडस्ट्री में ये मौका बहुत कम लोगों को मिलता है..हाँ कहने से पहले सोचा आपसे पूछ लूँ " शर्मा जी के बेटे राघवेंद्र ने सबसे पहले ये खुशखबरी अपने पिता को सुनाई

शर्मा जी ने गदगद होते हुए कहा "वाह बेटा ये तो बहुत फक्र की बात है..तेरे पापा मम्मी तो कभी यू.पी के भी बाहर नहीं निकले...और हमारे बेटे को सीधे अमेरिका जाने का मौका मिल रहा है..सब जगदम्बा की कृपा है..जरूर जाओ बेटा"

राघवेंद्र अमेरिका चला जाता है उसके पीछे शर्मा जी की बहू वैदेही ने उनकी जिम्मेदारी बहुत अच्छी तरह से संभाल ली और तीन महीने यूँ ही बीत गए एक दिन शर्मा जी के बेटे का अमेरिका से फोन आता है

"पापा..आपको याद है एक बार संगम के मेले में..एक हवाई जहाज वाला बड़ा सा झूला लगा था...वो जिसका चार्ज एक आदमी के लिए दो रुपैये था उस वक्त..उसमें कई बच्चे अपने अपने पापा मम्मी के साथ बैठ के झूल रहे थे...मैंने भी आपसे जिद की थी कि मुझे आपके साथ बैठना है..पर आपने मुझे किसी और अंकल के साथ बिठा दिया था.. मैं झूले में तो बैठा था पर बाद में आपसे बहुत गुस्सा हुआ था कि आप साथ में क्यों नहीं बैठे थे..पर बड़े होके मुझे समझ आ गया था कि आपके लिए उस समय दो रुपैये भी बहुत होते थे" राघवेंद्र का गला रुंध आया,उसने आगे कहा "पापा मेरी अमेरिका से वापसी का समय पास आ रहा है...आप मना मत करना..मैंने वैदेही को सब समझा दिया है वो वीजा टिकेट वगैरह का इंतजाम कर लेगी..आप और मम्मी वैदेही और कुशेन्द्र के साथ अमेरिका घूमने आ जाओ..वापसी हम सब साथ मे करेंगे...मैं इस बार अपने मम्मी पापा के साथ सच के हवाई जहाज में बैठना चाहता हूँ" राघवेंद्र की बात सुनकर शर्मा जी के गाल आँसूओं से भीगे चले जा रहे थे..वैदेही उनके पास खड़ी थी उसे फोन पकड़ा के वो घर के मंदिर में माँ अम्बे के पास नयनों में भर आए जल का अर्पण करने चले गए

आखिर वो दिन भी आता है जब शर्मा जी सपरिवार अमेरिका में राघवेंद्र के पास पहुँच जाते हैं और रात में आराम करने के बाद वहाँ की पहली सुबह देख रहे होते हैं वो राघवेंद्र से इलाहाबाद गुप्ता का नंबर मिलाने को कहते हैं

"हेल्लो कौन? अरे..हाँ शर्मा..बोल कैसा है..सब ठीक तो है..बड़े दिनों बाद याद आई.." इलाहाबाद में संगम के पश्चिमी किनारे पर सूरज डुबोते हुए गुप्ता ने एक साँस में कहा

इधर शर्मा ने अमेरिका से कहा "सब ठीक है गुप्ता..अमेरिका में हूँ..अपने बेटे के साथ 'पश्चिम' में सूरज को उगता देख रहा हूँ।"

-तुषारापात®

Friday, 1 September 2017

ऑफिस लव

एक बार कहा था उसने
यूँ ही हँसी हँसी में
कभी तुम्हारे साथ डिनर करेंगे
लंच पे भला क्यों बहक रहे हैं

और जमाना ले उड़ा वो बात
दोस्तों ने भी खूब खिंचाई की
उस एक हँसी ठिठोली के
कई किस्से अब तक महक रहे हैं

लंच में खिचड़ी खाती थी
डाल के मक्खन मेरे साथ
अब उसकी लाज के चावल
किसी और घी में लहक रहे हैं

हमसे मत पूछो 'तुषार'
क्या हुआ था हमारा हाल
कई ख्याली पुलाव पके थे
आँख के चूल्हे अब तक दहक रहे हैं

-तुषारापात®