Sunday 9 July 2017

सूखा सावन

रंगीन नई बारिशें
आँगन में
रोज़ उतर आती हैं
हम
इस सावन भी
यादों की काली
पुरानी छतरी खोले बैठें हैं
पलकें सूखीं,आँखें गीलीं
भीगे मन को प्यासे तन से,बाँधे बैठे हैं   -तुषारापात®

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