रंगीन नई बारिशें
आँगन में
रोज़ उतर आती हैं
हम
इस सावन भी
यादों की काली
पुरानी छतरी खोले बैठें हैं
पलकें सूखीं,आँखें गीलीं
भीगे मन को प्यासे तन से,बाँधे बैठे हैं -तुषारापात®
तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं। आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hl
Sunday 9 July 2017
सूखा सावन
Labels:
पुरानी बकसिया
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