"क्या कहा 'क्ष' 'त्र' 'ज्ञ' भी बंदी बना लिए गए..आह..परन्तु
ये कैसे संभव हुआ ये तीनों तो संयुक्ताक्षर होने के कारण अधिक शक्तिशाली
थे" पूरा देवनागरी शिविर दूत की सूचना पे एक साथ बोल उठा,दूत ने साम्राज्ञी
हिंदी को प्रणाम किया और अपना स्थान लिया।
"अवश्य धूर्त आंग्ल अक्षरों ने पीछे से आक्रमण किया होगा.. और
हमारी सेना की अंतिम पंक्ति के ये तीनो वर्ण युद्ध के अवसर के बिना ही
दासत्व को प्राप्त हुए होंगे" महामंत्री पाणिनि ने अपना मत प्रस्तुत किया
जो समस्त सभा को भी उचित प्रतीत हुआ।
हिंदी अपने सिंहासन से उठते हुए बोली "महामंत्री..इससे पहले
भी हमारे 'ट' 'थ' 'ठ' 'भ' 'ण' 'ड़' 'ढ' 'ऋ' जैसे अत्यन्त वीर अक्षर भी युद्ध
में बंदी हो चुके हैं...किस कारण हमारी पराजय हो रही है... बावन अक्षरों
वाली विशाल सेना अपने से आधी...मात्र...छब्बीस अक्षरों की आंग्ल सेना के
सामने घुटने टेक रही है..आह दुःखद किंतु विष के समान ये सत्य.."
"साम्राज्ञी का कथन उचित है..इसके दुष्परिणाम निकट भविष्य में
स्पष्ट होंगे..आने वाली पीढ़ी तुतलायेगी..परन्तु बहुत अधिक संभावना है तब
ये दोष नहीं अपितु एक गुण ही मान लिया जाय..देवी हमारी पराजय का कारण
सेनापति की अदूरदर्शिता है.. हमारी सेना एकमुखी होकर लड़ी..और शत्रु ने हम
पर चारो ओर से वार किया.. देवी..हमें चतुर्मुखी सेना का निर्माण करना चाहिए
था" महामंत्री ने भी अपना आसन छोड़ दिया
"क्या अब ये संभव नहीं..अब क्या उपाय शेष है?" हिंदी ने मात्र पूछने को जैसे पूछा हो
महामंत्री ने शीश झुका उत्तर दिया "हम पूर्व की ओर ही मुँह
किये खड़े रहे और हमें पता भी न चला कि हमारी पीठ के पीछे पश्चिम में सूर्य
अस्त हो रहा है..आह..दृष्टि पूर्व पर नहीं सूर्य पे रखनी चाहिए थी"कहकर
उसने एक गहरी साँस छोड़ी और धीरे से कहा "संधि ही मात्र एक उपाय शेष है"
सुनकर पूरी सभा में निराशा दौड़ गई
"दोष अवश्य हमीं में है..मेरे पुत्र..साम्राज्ञी हिंदी के
अक्षर.. अपने अभिमान में सदैव ऊपरी रेखा पर रहे..धरा पर उनके पाँव ही न
पड़ते थे..परन्तु आज ऊपरी रेखा पे लटके(लिखे) इन अक्षरों को फाँसी लग रही
है..और अंग्रेजी के अक्षर मजबूती से अपने पाँव धरा पे जमाते जा रहे हैं
(हिंदी ऊपरी रेखा पे लिखी जाती है और सिखाने को अंग्रेजी नीचे की रेखा पे)" कहकर हिंदी
ने अपना मुकुट उतार दिया।
-TUSHAR SINGH तुषारापात®
No comments:
Post a Comment