Saturday 10 September 2016

उम्मीद

फिर तुझसे कुछ उम्मीदें लगा रखीं हैं
दिल बहलाने को ये बातें बना रखीं हैं

कि छत नहीं पूरा आसमाँ टिका रखा है
बिना नींव के हमने दीवारें उठा रखीं हैं

बरगद के नीचे पनपने का हुनर ले आये
बेवजह उग आईं अपनी मूँछें कटा रखीं हैं

गर ये चार हो जातीं तो तीन हम हो जाते
इसी डर से नजरें बीवी से हटा रखीं हैं

कभी अच्छा था हमारा भी तुम्हारे जैसा 'तुषार'
उस गए वक्त की रुकी कुछ घड़ियाँ सजा रखीं हैं

-तुषारापात®™

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