Saturday, 30 March 2019

रात का सरकना

जैसे जैसे रात सरकती जाती है
मेरी डायरी में छुपती छपती जाती है
पन्नों से सफेदी को खिसका के
धीरे धीरे सुबह को रिहा करती जाती है

~तुषारापात®

Friday, 15 March 2019

कमतर है बेहतर

बेहतर दिखने के लिए अपने से कमतर के साथ बैठिये पर बेहतर होने के लिए अपने से बेहतर के पास खड़े होइए।

~तुषारापात®

Monday, 11 March 2019

आँखों के कुल्हड़

आँखें मेरी चूमते थे जो अब नज़र यूँ फेर बैठें हैं
चाय पीने के बाद लोग कुल्हड़ ज्यूँ फेंक देतें हैं

#तुषारापात®

Sunday, 10 March 2019

शातिर कुम्हार

रोज़ एक ख़्वाब टूट जाता है
आँखें शातिर कुम्हार हैं टूटने वाले खिलौने बनाती हैं

~तुषारापात®

Thursday, 7 March 2019

उतरता सूरज

चढ़ते सूरज को मिलता है एक लोटा जल
दरिया आता है उतरते सूरज को संभालने मगर

#तुषारापात®