Wednesday 25 April 2018

ठूँठ

एक पेड़ था मैं हरा भरा
तेज आंधी ने धरा में औंधा धरा
मैंने देखा है सिसकते हुए
अपने फलों को नुचते हुए
हरी हरी छोटी टहनियाँ
चर गईं मुझे बकरियाँ
काट न पाए
क्योंकि था जड़ीला बड़ा
ठूँठ का संबोधन मुझे मिला
इधर उधर लुढ़कते
सागर किनारे पहुँच गया
ठूँठ हूँ पर पेड़ का
सागर पे उगते सूरज को देख
हर्षित हुआ
लोगों ने खेल खेल कर सागर में गिरा दिया 
एक लठ्ठ सा तैरता हूँ अब
नाव बनता तो कोई देता दिशा
तुम्हें लगता है बनूगा एक दिन जहाज मैं
मुझे पता है ठूंठ हूँ मैं
अभी दिख रहा हूँ तुम्हें तैरता हुआ
मगर क्षितिज पे दूर सागर में
दिखूँगा नजर में तुम्हारी डूबता हुआ।

#ठूँठ
#तुषारापात®

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