एक पेड़ था मैं हरा भरा
तेज आंधी ने धरा में औंधा धरा
मैंने देखा है सिसकते हुए
अपने फलों को नुचते हुए
हरी हरी छोटी टहनियाँ
चर गईं मुझे बकरियाँ
काट न पाए
क्योंकि था जड़ीला बड़ा
ठूँठ का संबोधन मुझे मिला
इधर उधर लुढ़कते
सागर किनारे पहुँच गया
ठूँठ हूँ पर पेड़ का
सागर पे उगते सूरज को देख
हर्षित हुआ
लोगों ने खेल खेल कर सागर में गिरा दिया
एक लठ्ठ सा तैरता हूँ अब
नाव बनता तो कोई देता दिशा
तुम्हें लगता है बनूगा एक दिन जहाज मैं
मुझे पता है ठूंठ हूँ मैं
अभी दिख रहा हूँ तुम्हें तैरता हुआ
मगर क्षितिज पे दूर सागर में
दिखूँगा नजर में तुम्हारी डूबता हुआ।
#ठूँठ
#तुषारापात®
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