Tuesday 10 April 2018

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

उसके
एक हाथ में किताब
और दूसरे में
छोटा सा एक झोला है

चलते हुए उसकी बाहें
लक्ष्य की ओर जाती नाव की
दो पतवारों की तरह
उल्टी धारा को चीरतीं जा रहीं हैं

उसकी
कॉटन साड़ी की करारी प्लेटें
आदम ज़माने की हवा काट
हव्वा के झंडे की तरह लहरा रहीं हैं

कल लड़ी थी पढ़ी थी
अब अपने जैसी सभी को पढ़ा रही है
दलदल निचोड़ के उसमें कैद पानी को
कलकल बहा रही है कल बना रही है।

~तुषारापात®

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