Thursday 20 July 2017

वक्त का तमंचा

पत्थर रख लो छाती पे..मोहर लगेगी छोटे हाथी पे..अरे पत्थर रख दो छाती पर..मोहर लग रही..लग रही...छोटे..छोटे हाथी पर." दो जीपों में ठुंसे और अनेकों मोटरसायकल पे सवार लड़के,सड़कों और गलियों में घूम घूम के ये नारे लगा रहे थे,उनकी गाड़ियों पे लगे पार्टी के नीले झंडे उतने नहीं लहरा रहे थे जितने वो युवक अपने वाहन लहरा रहे थे।

लखनऊ उत्तरी विधानसभा के वार्ड नम्बर 72 बजरंग बली वार्ड से 'बहनजी श्रॉप पार्टी' के सभासद प्रत्याशी बब्बन के लिए चुनाव प्रचार में राघवेंद्र,पिंटू और बब्बन का छोटा भाई सतीश जोर शोर से लगे थे। ये तीनो हमउम्र थे और आपस मे दोस्त थे जिसमें राघवेंद्र और पिंटू लखनऊ यूनिवर्सिटी से बी.कॉम कर रहे थे लेकिन सतीश आठवाँ पास था या फेल ये रहस्य बस ये तीनो ही जानते थे,बब्बन निम्न मध्य वर्ग से था जिसने इस चुनाव के लिए डंडइया मार्केट में अपनी रेडीमेड कपड़ों की चलती दुकान तक गिरवी रख दी थी।

"अबे..ये कहाँ से मारा..तुमने..सॉलिड है यार.." पिंटू ने राघवेंद्र के हाथ से तमंचा लेते हुए कहा,तीनो एक पान की दुकान पे रुके थे,बब्बन  अपने चुनावी काफिले के साथ आगे बढ़ गया था

राघवेंद्र ने उसके हाथ से कट्टा वापस लिया और बोला "मारा नहीं है बे.. खरीदा है..हरदोई का बना है..सॉलिड 312..नाल देखी तुमने इसकी.. ट्रक के स्टेरियिंग से बनी है.. कट्टा नहीं तोप है ये तोप"

"अमा..टेस्ट किया है इसे..या ऐसे ही बढ़ा चढ़ा के फेंके जा रहे हो" सतीश ने सिगरेट का कश लगा के सिगरेट राघवेंद्र को पकड़ाते हुए कहा

"नहीं बे..चलाये नहीं हैं..अभी..बस पसंद आया तो शौकिया खरीद लिए.." राघवेंद्र सिगरेट फूँकने लगा सतीश ने उससे तमंचा लिया और कहा "तो इधर लाओ..टेस्ट करके..देंगे कल.."

"अरे..मगर..चलो अच्छा..ठीक है..लेकिन कल लौटा देना ध्यान से" राघवेंद्र ने अनमने मन से कहा, तभी वहाँ से दूसरे प्रत्याशी के समर्थन में बहुत सारे लोग शोर मचाते नारे लगाते निकले "चप्पा चप्पा.. कमलगट्टा... कहाँ पड़े हो चक्कर में...कोई नहीं है टक्कर में..चप्पा.." सतीश भीड़ की तादात देख के मुँह बनाता है और गालियां बुदबुदाने लगता है,गुटखे के कई सारे पैकेट खरीद,तीनों वहाँ से बढ़ के फिर से अपने जुलूस में शामिल हो जाते हैं।

ऐसे ही कई दिनों तक ये तीनो चुनाव प्रचार में लगे रहते हैं राघवेंद्र ने कई बार सतीश से तमंचा वापस मांगा पर सतीश कोई न कोई बहाना बना देता,सतीश की नीयत नहीं थी कट्टा वापस करने की। एक दिन जब राघवेंद्र सख़्ती के साथ वापसी की बात कहता है तो सतीश उसकी ओर तमंचा तान देता है "एक बार और अगर तमंचा तमंचा किए तो तमंचा नहीं गोली मिलेगी..वो भी पिछवाड़े में"

राघवेंद्र अचंभित रह जाता है "वक्त वक्त की बात है सतीश..दोस्त के लिए गोली खाने की बात वाले..आज दोस्त पे ही तमंचा तान रहे है.. कभी आगे जब तुम्हारा खराब वक्त आएगा तो..दोस्त काम आएगा तमंचा नहीं"

"जिसके हाथ मे ये होता है न..वक्त उसी का होता है..और तमंचा न बुरे वक्त को भी गोली मारे रहता है.." सतीश ने कट्टा लहराते हुए कहा, राघवेंद्र मायूस होकर वापस लौट आता है।

"साले..तुममें दम नहीं है...बब्बन के कारण..तुम्हारी सतीश से फटती है..तुम्हारी जगह कोई और होता तो गिरेबान दबोच के अपना सामान वापस ले लेता..छक्के हो तुम..." पिंटू और साथ के कई लड़के कभी राघवेंद्र के सामने तो कभी उसके पीठ पीछे कुछ इसी तरह की बातें किया करते और उसका मजाक उड़ाया करते थे।

राघवेंद्र ने किसी को कोई जवाब नहीं दिया..वो समझ चुका था कि इस लाइन में कोई भविष्य नहीं है जहाँ एक ज़रा सी चीज के लिए दोस्त ही दोस्त का दुश्मन बन जाए..वो इन सभी लोगो से सदा के लिए दूर हो गया। इसी बीच चुनाव परिणाम घोषित हुए बब्बन की जमानत जब्त हो गई राघवेंद्र इन सबसे अनजान बना अब अपनी पढ़ाई को गंभीरता से ले रहा था।

"मेरे इंद्र देवता..मेरे पास कोई ढंग की साड़ी नहीं है..कल की पार्टी के लिए क्या 'बैंक के अफसर बाबू' मुझे एक साड़ी दिलाने ले चलेंगे" बैंक से लौट के घर आए राघवेंद्र से उसकी पत्नी शकुंतला ने गले लगते हुए कहा

"ठीक है..चलते हैं..पहले जरा चाय वाय तो पिलाओ भाई.." राघवेंद्र ने हँसते हुए कहा, चाय पीकर वो दोनों कपूरथला चौराहे पे स्थित गीता वस्त्रालय से साड़ी खरीदने निकल जाते हैं शोरूम के बाहर सड़क पर कर रोक कर राघवेंद्र कहता है "शकु तुम चलो..मैं ज़रा गाड़ी खड़ी करने की जगह ढूँढता हूँ" शकुंतला कार से उतर के शोरूम में चली जाती है

राघवेंद्र सात आठ मिनट बाद कार खड़ी कर शोरूम में दाखिल होता है गीता वस्त्रालय का मैनेजर उसे पहचान कर अभिवादन करता है "नमस्कार राघवेंद्र साहब..मैडम उधर हैं..कर्मचारी उन्हें साड़ियाँ दिखा रहा है..राघवेंद्र उसे धन्यवाद देकर शकुंतला के पास जाकर  पूछता है "हाँ..भाई.. आई कोई साड़ी..तुम्हें पसंद.."

उसकी आवाज़ सुनकर साड़ी दिखाने वाला व्यक्ति उसकी ओर देखता है राघवेंद्र भी उसे देखता है दस साल के बाद सतीश और राघवेंद्र फिर आमने सामने थे लेकिन आज सतीश की नज़र लहरा रही थी.. गोली न उस दिन चली थी न आज चली...आज वक्त का तमंचा चला था जिसपे सब्र का साइलेंसर लगा हुआ था।

-तुषारापात®

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