"क्या आपने ईश्वर को देखा है?"....पंचवटी में भीड़ से घिरे परमहंस को इस प्रश्न ने चौंका दिया, उस वाणी में कठोरता तो नहीं परन्तु दृढ़ता बहुत थी और जिसे परमहंस के आसपास बैठे लोगों ने उस नवयुवक की धृष्टता मान उनके बोलने से पहले ही उस नवयुवक से प्रश्न कर दिया "न कोई अभिवादन न नमस्कार..प्रथम प्रश्न वो भी इतना तीक्ष्ण...सीधे ठाकुर से दुस्साहस करने वाला तू है कौन?"
"प्रश्न कल्पित होता है..इसलिए प्रायः उसे दुस्साहस की संज्ञा दी जाती है...प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ये बताता है कि उत्तर देने का साहस किसी में नहीं है" नरेंद्र ने सीधे परमहंस की आँखों में देखते हुए कहा।
उसके उत्तर से परमहंस का हृदय अपार आनन्द से भर उठा वो मीठे स्वर में बोले "हाँ मैं ईश्वर से ऐसे ही बात करता हूँ...जैसे कि तुमसे कर रहा हूँ...परन्तु काष्ठ को चुम्बकत्व का अनुभव नहीं होता... उसके लिए या तो भक्त को लौह होना पड़ेगा...या चुंबक..."
इस बार नरेंद्र ने पहले उन्हें प्रणाम किया और फिर बोला "परन्तु अब तक जितने भी गुरु मिले सब कहते हैं वो पारस हैं और मुझ भंगुर लौह को स्वर्ण बनाना चाहते हैं....स्वर्ण सबसे मूल्यवान धातु है और देवताओं को अति प्रिय है.."
"स्वर्ण की सुरक्षा लौह के विशाल संदूकों और तालों से ही की जाती है..देवताओं के स्वर्ण मुकुटों की रक्षा लौह के तीर करते हैं... गुरु में पारस तत्व नहीं चुम्बक्तव होना चाहिए...परन्तु ऐसा कि वो समीप में आए लौह को चुम्बक बना दे और अपने समान ध्रुव से उसके ध्रुव को छिटक दे..उसे शिष्य को खुद से चिपकाए नहीं रखना चाहिए" परमहंस उस विपरीत ध्रुवी नरेंद्र की ओर आकर्षित हो रहे थे।
नरेंद्र संतुष्ट हो चुका था उसने सादर निवेदन किया "क्या इस लौह को कुछ चुम्बकीय ऊर्जा प्राप्त हो सकेगी?"
"तू पहले से ही चुम्बक है नरेंद्र...बस तेरा ध्रुव मुझे अपने समान करना है...फिर तू मेरी पूरी विकर्षित ऊर्जा से गति पायेगा और इस संसार को उसका 'स्वामी' मिल जाएगा...जो अपने से विपरीत ध्रुव वाले चुंबकों को जोड़ जोड़ कर एक महा चुम्बक बनायेगा... इस पूर्व देश और इसकी मान्यताओं के ठीक विपरीत मान्यताओं वाले पश्चिमी देश तेरे आगे नतमस्तक होंगे" इतना कहकर परमहंस माँ काली के मंदिर की ओर देखकर मंद मंद मुस्कुराने लगे,माँ ने ठाकुर से कहा "गदाधर! तुझे अपना पुत्र दे रही हूँ..तू इसके विवेक जागृत कर और इस संसार को तर्क का आनन्द दे"
माँ के इस वाक्य को रामकृष्ण के अतिरिक्त कोई न सुन सका परन्तु उनके चरणों को पकड़े बैठे नरेंद्र को कुछ फुसफुसाहट सी अवश्य सुनाई दे गई।
#तुषारापात®™(स्वामी के चरणों में लिपटी धूल के रूप में)
"प्रश्न कल्पित होता है..इसलिए प्रायः उसे दुस्साहस की संज्ञा दी जाती है...प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ये बताता है कि उत्तर देने का साहस किसी में नहीं है" नरेंद्र ने सीधे परमहंस की आँखों में देखते हुए कहा।
उसके उत्तर से परमहंस का हृदय अपार आनन्द से भर उठा वो मीठे स्वर में बोले "हाँ मैं ईश्वर से ऐसे ही बात करता हूँ...जैसे कि तुमसे कर रहा हूँ...परन्तु काष्ठ को चुम्बकत्व का अनुभव नहीं होता... उसके लिए या तो भक्त को लौह होना पड़ेगा...या चुंबक..."
इस बार नरेंद्र ने पहले उन्हें प्रणाम किया और फिर बोला "परन्तु अब तक जितने भी गुरु मिले सब कहते हैं वो पारस हैं और मुझ भंगुर लौह को स्वर्ण बनाना चाहते हैं....स्वर्ण सबसे मूल्यवान धातु है और देवताओं को अति प्रिय है.."
"स्वर्ण की सुरक्षा लौह के विशाल संदूकों और तालों से ही की जाती है..देवताओं के स्वर्ण मुकुटों की रक्षा लौह के तीर करते हैं... गुरु में पारस तत्व नहीं चुम्बक्तव होना चाहिए...परन्तु ऐसा कि वो समीप में आए लौह को चुम्बक बना दे और अपने समान ध्रुव से उसके ध्रुव को छिटक दे..उसे शिष्य को खुद से चिपकाए नहीं रखना चाहिए" परमहंस उस विपरीत ध्रुवी नरेंद्र की ओर आकर्षित हो रहे थे।
नरेंद्र संतुष्ट हो चुका था उसने सादर निवेदन किया "क्या इस लौह को कुछ चुम्बकीय ऊर्जा प्राप्त हो सकेगी?"
"तू पहले से ही चुम्बक है नरेंद्र...बस तेरा ध्रुव मुझे अपने समान करना है...फिर तू मेरी पूरी विकर्षित ऊर्जा से गति पायेगा और इस संसार को उसका 'स्वामी' मिल जाएगा...जो अपने से विपरीत ध्रुव वाले चुंबकों को जोड़ जोड़ कर एक महा चुम्बक बनायेगा... इस पूर्व देश और इसकी मान्यताओं के ठीक विपरीत मान्यताओं वाले पश्चिमी देश तेरे आगे नतमस्तक होंगे" इतना कहकर परमहंस माँ काली के मंदिर की ओर देखकर मंद मंद मुस्कुराने लगे,माँ ने ठाकुर से कहा "गदाधर! तुझे अपना पुत्र दे रही हूँ..तू इसके विवेक जागृत कर और इस संसार को तर्क का आनन्द दे"
माँ के इस वाक्य को रामकृष्ण के अतिरिक्त कोई न सुन सका परन्तु उनके चरणों को पकड़े बैठे नरेंद्र को कुछ फुसफुसाहट सी अवश्य सुनाई दे गई।
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