कविता स्त्री है
और पुरुष कवि है
आश्चर्य है
नहीं गया इस ओर ध्यान
नग्न लिपि को पहनाता
कवि अलंकृत परिधान
नश्वर कवि
अपने वरदहस्त से
उकेरता शब्दांगो की वक्रताएँ
भरता षोडशी चंचलताएँ
करता चिरयौवना
कविता का निर्माण
जीविका नहीं
न विपणन
है कविता उसका सृजन
यायावरी पाठक
छोड़ चीरहरण
कर अतीन्द्रिय सुख का संधान
कविता माँ है
कवि शिशु सा है
चक्रीय है ये विधान
कवि पिता है
कविता उसकी कन्या है
कर कवितादान
कवि हो जाता अंतर्ध्यान
-तुषारापात®™
और पुरुष कवि है
आश्चर्य है
नहीं गया इस ओर ध्यान
नग्न लिपि को पहनाता
कवि अलंकृत परिधान
नश्वर कवि
अपने वरदहस्त से
उकेरता शब्दांगो की वक्रताएँ
भरता षोडशी चंचलताएँ
करता चिरयौवना
कविता का निर्माण
जीविका नहीं
न विपणन
है कविता उसका सृजन
यायावरी पाठक
छोड़ चीरहरण
कर अतीन्द्रिय सुख का संधान
कविता माँ है
कवि शिशु सा है
चक्रीय है ये विधान
कवि पिता है
कविता उसकी कन्या है
कर कवितादान
कवि हो जाता अंतर्ध्यान
-तुषारापात®™
No comments:
Post a Comment