Sunday 31 December 2017

नाबालिग सदी

नाबालिग है अभी भी चाहे उन्नीस बीस से ही हो
अठारहवाँ लगा है साल अभी इक्कीसवीं सदी को

-तुषार सिंह #तुषारापात®

Thursday 28 December 2017

किस्मत की चवन्नी

जिन्हें किस्मत की चवन्नी नहीं मिलती,जीवन की दौड़ में उनकी मेहनत के सोलह आने,बारह आने बन लंगड़ाते हैं।

-तुषारापात®

Sunday 24 December 2017

बड़ा दिन

कैलेंडर रंगभेद करता है,लाल और काले में यहाँ
दिन भी होता है बड़ा और छोटा,आदमी की तरह

-तुषारापात®

बड़ा दिन

मकर संक्रांति तो हम पिछड़े लोगों की बातें हैं
दिन बड़ा होने का जश्न वो लंबी रातों में मनाते हैं

-तुषारापात®

Tuesday 19 December 2017

जीवन

इस वन में बसन्त कभी,कभी पतझड़ा होता है
पर सावन में गिरे पत्तों का दर्द पौष में हरा होता है

-तुषारापात®

दिसम्बर की चोट

सर्द मौसम में उभर आते हैं जून के हल्के दर्द भी
और ये चोट तो दिसम्बर की है न जाने कितना पिराएगी

-तुषारापात®

Monday 18 December 2017

ख़तों की राख से इश्क़ दफ़ना दिया है मैंने

मैं था बेवफा सबसे ये कहला दिया है मैंने
तुम्हारे हक़ में काम ये पहला किया है मैंने

नाम अब भी आता है तुम्हारा लबों पे मगर
दीवार के कानों को अब समझा दिया है मैंने

कि तुम्हारा कोई भी नामोनिशां न बाकी रहे
ख़तों की राख से इश्क़ दफ़ना दिया है मैंने

जाने तुम मनाओ न मनाओ मौत के बाद की रस्में
जीते जी अपना तेरहवीं दसवाँ करवा दिया है मैंने

ऐसा भी नहीं कि हाथ अपना सीने तक न पहुँचे
जरा सी बात थी दिल को बहला दिया है मैंने

धड़कने जब जब तेरे नाम पे तेज हुईं हैं 'तुषार'
काँधे के एक बालिश्त नीचे सहला दिया है मैंने

-तुषारापात®

Friday 15 December 2017

टूटन

कुछ टूटा हुआ जब भी मुझमें खनकता है
कलम कागज़ पे हर्फ़ हर्फ़ जोड़ने लगता है

-तुषारापात®

Thursday 14 December 2017

कॉपी पेस्ट

"हा.ई..लो मैं भी हॉफ डे लीव लेकर आ गया.."राहुल कमरे में घुसते ही चहकते हुए बोला पर टिया को रजाई लपेटे सोते देख उसके पास जाकर पूछता है "क्या हुआ..ऑफिस से अभी आई हो क्या...ऐसे क्यों लेटी हो.."

टिया ने आँखें मलते हुए कहा "ऑफिस से तो लीव लेकर जल्दी ही आ गई थी..पर..तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही.."

राहुल ने उसका माथा छुआ और लॉबी में जाकर मेडिसिन बॉक्स से थर्मोमीटर निकाल के लाया और उसे लगाने को बोला,एक मिनट के बाद थर्मोमीटर चेक करके वो कहता है "हम्म..थोड़ा सा फीवर है..ठंड लग गई शायद तुम्हें.."

"कितना है" टिया ने राहुल के हाथ से थर्मोमीटर छीनने की नाकाम कोशिश करते हुए पूछा

"अरे..अरे..ज्यादा नहीं है..कोई मेडिसिन ली..नहीं न..रुको मैं क्रोसिन देता हूँ.." राहुल उसके हाथ से थर्मोमीटर बचाता है और झटक के थर्मोमीटर के केस में रख देता है

टिया ने उदास सी शक्ल बनाते हुए कहा "यार आज तुम्हारा बर्थडे है..और मैं अपनी तबियत खराब करके बैठ गई..सोचा था तुम्हारी पसंद की डिशेस बनाऊँगी और एक छोटी से पार्टी थ्रो करूँगी..सब गुड़ गोबर हो गया" तभी डोरबेल बजती है तो वो आगे कहती है "शिट यार..देखो कोई तुम्हें विश करने न आया हो..ओह..गॉड.कहीं भैया-भाभी तो नहीं आ गए..यार मैने तो कुछ भी नहीं बनाया..नमकीन भी थोड़ी सी है..तुमसे कहा था कि नाश्ता लाना है..पर तुम सुनते ही नहीं..."

"रिलैक्स..रिलैक्स..मैं देखता हूँ..अगर भैया भाभी भी होंगे तो क्या हुआ..मैं मार्केट से कुछ ले आऊँगा न..बर्थ डे के दिन तो मत डाँटो.." राहुल हँसते हुए ये कहता है और जाकर दरवाजा खोलता है सामने पड़ोस की पम्मी आँटी थीं उसके कुछ कहने से पहले ही वो बोल पड़ीं
"ओये शेर पुत्तर..बर्थडे बॉय..हैप्पी बर्थडे..टिया कहाँ है..ये देख तुम दोनों के लिए इडली सांभर बना के लाईं हूँ"

"थैंक्स आँटी..आइये अंदर आइये" राहुल उन्हें टिया की तबियत के बारे में बताता है और अंदर बुलाता है पम्मी आँटी टिया का हाल चाल पूछतीं हैं और थोड़ी देर में ढेर सारी इडलीयाँ देकर चलीं जाती हैं

"ये लो बर्थडे मेरा और तुम्हारे पसन्द की चीज लोग दे जा रहे हैं..इंडिया भी कमाल है..यहाँ एक पंजाबी आँटी साउथ इंडियन डिश बनाती हैं और पड़ोस में दे भी जातीं हैं" राहुल टिया के मुँह में इडली का एक टुकड़ा डालते हुए कहता है

"कुछ भी कहो..पम्मी आँटी हैं तो पंजाबन पर साउथ इंडियन कमाल का बनातीं हैं..उनके हाथ की इडली तो पूरी कॉलोनी में फेमस है..पर यार मुझे कोई टेस्ट नहीं लग रहा..बुखार कितनी देर में ठीक होगा..मैं बोर हो गईं हूँ.." टिया ने इडली के टुकड़े को किसी तरह निगलते हुए कहा

राहुल कुछ कहता कि तभी डोरबेल फिर से बजती है वो जाकर दरवाजा खोलता है तो पाता है उसके भैया-भाभी आए हुए हैं वो दोनों के पैर छूता है और ड्राइंग रूम में उन्हें बिठा टिया को आवाज देता है कि भैया भाभी आए हैं टिया भी जेठ जेठानी के सम्मान में उठकर बैठक में आ जाती है

जन्मदिन की शुभकामनाओं,आशीर्वाद और चाय के एक दौर के बाद टिया उन्हें इडली सांभर ऑफर करती है जिसे थोड़ी न नुकुर के बाद वो स्वीकार कर लेते हैं

एक एक इडली और थोड़ा थोड़ा सांभर सबके लेने के बाद राहुल के भैया भाभी अबकी दो दो इडलियाँ और ढेर सारा सांभर लेते हैं और उसकी भाभी टिया से पूछतीं हैं "वाओ..टिया..इडली तो बहुत ही बढ़िया बनी है..और सांभर भी प्योर साउथ इंडियन मसाले से बना लग रहा है..बहुत ही यमी..सो टेस्टी..रेसिपी तो बता..कैसे बनाया..."

टिया राहुल को देख के मुस्कुराती है मानो पूछ रही हो क्या कहूँ "अरे भाभी ये तो बस ऐसे ही..वही चावल और सूजी मिक्स..और..अरे आप और लीजिये न..भैया आप भी लीजिये न.." कहकर वो एक एक इडली और उनकी प्लेट में रख देती है

"टू टेस्टी..." भैया इडली खाते खाते कहते हैं और भाभी भी सांभर का सिप लेकर इडली के टुकड़े को जुबान पे चुभलाते हुए कहती हैं "इडली का कोई पेस्ट लिया है क्या..किस कम्पनी का है..कहीं वो मदर्स वाला ब्रांड तो नहीं..नहीं..नहीं..वो इतना बढ़िया नहीं होता..कौन सा है?"

टिया झेंपते हुए कहती है "भाभी कोई ब्रांडेड नहीं था..अबकी लाऊँगी तो आपके लिए भी एक ले आऊँगी" कहकर उसने किसी तरह पीछा छुड़ाया थोड़ी देर में वो लोग राहुल को फिर से बर्थडे विश करते हैं और चले जाते हैं

"अच्छा बेटा..पम्मी आँटी की इडलियों पे मेला लूटा जा रहा था" भैया भाभी के जाने के बाद राहुल टिया को चिढ़ाते हुए कहता है "आने दो अबकी भाभी को..बताऊँगा उन्हें..ये पेस्ट नहीं..कॉपी पेस्ट था"

"जब तबियत ठीक न हो तो इतना कॉपी पेस्ट तो चलता है और ये कोई चोरी थोड़ी है जानू..पम्मी आँटी भगवान का अवतार हैं..उनके चरण छुआ करूँगी अब" टिया पैर छूने की नौटंकी करते हुए कहती है और दोनों हँसते हँसते सोफे पे गिर जाते हैं।

-तुषारापात®

Friday 8 December 2017

कनक का अनमोल रजत

"तुम्हें लिखना नहीं छोड़ना चाहिए था...कॉलेज के दिनों की तुम्हारी कविताएं.. आज तक जहन में घूमती हैं... खास तौर पे वो तुम्हारी गोल्डन कश वाली कविताएं... रजत.. आज भी जब पढ़ती हूँ तो ऐसा लगता है मानो सुलगते हुए लफ़्ज़ों पे... एहसासों की ओस का छींटा पड़ रहा हो और छुन्न की आवाज पूरा गुजरा वक्त भीतर खनखना जाती हो... अगर तुम लिखते रहते तो इलाहाबाद तुम्हारे नाम से जाना जाता" आनंद भवन के लॉन में बैठी घास के एक तिनके को उखाड़ते हुए कनक ने कहा

रजत ने उसके हाथ से उखड़ा हुआ तिनका लिया और उसे मिट्टी में फिर लगाने की कोशिश करते हुए बोला "अब वो छुन्न की आवाज मैं रोज सुनता हूँ होटल के किचेन में..जब डिश बनाने के बाद..बेसिन में पॉट डुबो देता हूँ..कनक पेट की आग..कलम की क्रांति की मशाल से बड़ी होती है..बहुत बड़ी..शौहरत से दिमाग की भूख शांत होती है पेट की नहीं..और लिखता रहता तो क्या..बस दो चार सम्मान की शॉल मिल गईं होतीं..फटा कुर्ता छुपाने को"

कनक ने तिनके के चारों ओर मिट्टी को दबाते हुए कहा "और दिल की भूख?...अब तो सब ठीक है अब फिर से राइटिंग स्टार्ट कर दो..शेफ रजत केसरवानी साहब"

"एक बार उखड़ा हुआ पौधा तो फिर से मिट्टी में जम सकता है पर पेड़ नहीं" रजत ने तिनके को जमाते हुए कहा

"आह..क्या पंच लाइन मारी है..टाइमिंग है अभी भी तुममें..राइटर जिंदा है कहीं" कनक उसकी कही पंक्ति पे निहाल होने की ओवर एक्टिंग करते हुए आगे बोली "शादी के पहले तो बहुत लिखते थे.. शादी के बाद क्या हो गया..या मुझसे शादी नहीं होती तो लिखते.. कोई गम कोई दर्दे दिल का बहाना नहीं रहा...क्यों रॉकस्टार?"

रजत रॉकस्टार फिल्म याद करते हुए हँसते हुए बोला "हाँ शादी के बाद तुम्हारे माथे की लाल बिंदी ने सारी कल्पनाओं पे फुल स्टॉप जो लगा दिया"

"हाऊ..क्या वाकई में...क्या तुम्हारे राइटिंग छोड़ने की वजह सच में..मैं हूँ.." कनक ने घास पे अपनी मुठ्ठी कसते हुए कहा

रजत ने घास को उससे छुड़ाया और उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर मुस्कुराते हुए बोला "लगता है अब मेरे जोक्स में धार नहीं रही.."

"रहने दो..अब मैं तुमसे बात तभी करूँगी जब तुम राइटिंग छोड़ने का कारण बताओगे.." कनक ने हाथ छुड़ाया और दूसरी ओर घूम के बैठ गई

रजत घास पे पसरते हुए बोला "कनक..तुम्हारे पापा से जब मैं तुम्हारा हाथ माँगने गया था तो उन्होंने पूछा था कि मैं करता क्या हूँ और मेरे राइटर कहने पे उन्होंने कहा था कि हाँ हाँ ठीक है लिखते हो..पर काम क्या करते हो.. तो मैं कुछ जवाब नहीं दे पाया था..अपनी सबसे फेमस कविता भी उन्हें सुनाई थी..सुनकर उन्होंने बस ये कहा था कि बच्चन नाम से अमिताभ जाना जाता है हरिवंश नहीं..और उठकर चले गए थे"

"तो क्या हुआ..मैंने तो तुम्हारा साथ दिया..शादी की न..उनकी मर्जी के बगैर...और देखो सबकुछ अच्छा ही रहा..वो भी आज कितने खुश हैं हम दोनों को खुश देख के..ये बात तो मैं जानती ही थी..इसमें नया क्या बताया" कनक ने मुँह फेरे हुए ही कहा

"उन्होंने ये भी कहा था..कनक बहुत ऐशो आराम से पली बढ़ी है.. रजत और कनक के मोल का अंतर तो तुम्हें पता होगा ही" रजत उठकर अपना स्वेटर उतारते हुए बोला

कनक उसकी ओर घूमी और उसके हाथ से स्वेटर ले कर अपने सिर को ढकते हुए बोली "हम्म..तुमने ये बात आजतक क्यों छुपाई..खैर अब तो लिख सकते हो..फिर से शुरू करो..सरस्वती का वरदान सबको नहीं मिलता"

"तुम्हें याद है..शादी के बाद घर में सब एक साल तक गंगा में जाने को मना कर रहे थे..." रजत इतना ही कह पाया था कि कनक उसकी बात काटते हुए बोली "हाँ..तुम फिर भी..मुझे नाव से संगम ले चले थे..कितनी बढ़िया शाम थी..गंगा यमुना की तरह हम भी एक हो गए थे.."

रजत ने उसका हाथ थामते हुए कहा "हाँ..और गंगा जमुना के उस मिलन में..सरस्वती कहीं लुप्त थी..नाव में बैठा मैं..दूसरी ओर तुम्हें देख रहा था..फीका नारंगी सूरज .. तुम्हारी सुर्ख लाल बिंदी को देख सकुचाते हुए पानी में गड़ा जा रहा था..बस मैंने तभी डिसाइड कर लिया था कि..तुम्हारी माँग के सिंदूर को तुम्हारे पापा के आगे फीका नहीं पड़ने दूँगा..सरस्वती से मुख पे तेज आता है पर चेहरे पे चमक लक्ष्मी आती है..और..तब..चुपके से..तुम्हारी नज़र बचा के अपना फेवरिट पेन जिससे लिखना मुझे बहुत पसंद था..वहीं जल में छोड़ आया था...शायद त्रिवेणी पूरी करने को संगम में सरस्वती घोल आया था।"

कनक मुद्राओं की चमक के आगे नाचते संसार को रजत हँस मटमैला दिखता है।

#कनक_का_अनमोल_रजत
#तुषारापात®