पिता की आँखों मे कभी कभी दिखती है
उनकी कमीजों में हमेशा नमी दिखती है
~तुषारापात®
तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं। आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hl
पिता की आँखों मे कभी कभी दिखती है
उनकी कमीजों में हमेशा नमी दिखती है
~तुषारापात®
पलकों के बाँधों में बंधी रहती है
आँख की नहर भीतर बहती है
लब खिंचे रहते हैं कानों तक
शाम के कहकहे सुबह सहती है
~तुषारापात®
लाइक और कमेंट के इन नंबरों में-
नानी का 'एक' घर
बेलाइट की 'दो'पहर
खड़ी 'चार'पाई की रेल
'तीन' दो 'पाँच' का खेल
लूडो का पौ 'छह',कैरम की क्वीन
निन्यानबे पे डराता वो साँप बगैर बीन
'सात' पत्थरों का गिट्टी फोड़
माँ का बेफिक्री से पड़ोस में हमें देना छोड़
पहेलियों पे एक दूसरे से हारी मनवाना
मामा की लाई हुई नई कॉमिक्स चुराना
छोटे से कमरे में 'आठ' 'दस' लोगों का साथ
सब 'नौ' दो 'ग्यारह' हो गए कहाँ ले बैठे पुरानी बात।
~तुषारापात®
एक कदम पे है एक ख़ुदा का घर और दूसरे कदम पे दूजा
रास्ता भटक गईं हैं मंजिलें मुसाफिर चादर तान के सो जा
~तुषारापात®
हैट से खरगोश निकालने से कहीं बढ़कर जादू, मायके गई बीवी का अपने पर्स में मोबाइल ढूँढकर पति की कॉल उठाना है।
~तुषारापात®