Thursday 9 July 2015

प्रस्तावना का प्रवेश : सन्दर्भ संग व्याख्या

"मैं अब तुम्हें अच्छी नहीं लगती न..?" व्याख्या ने सन्दर्भ की तरफ करवट लेते हुए पूछा

सन्दर्भ समझ गया कि फिर से वही पुराना हमला होने वाला है "अरे...जान ऐसा क्यों कह रही हो.. क्या हुआ.?"

"कुछ नहीं बस यूँ ही पुछा....तुमने जवाब नहीं दिया..?"

"अरे यार....तुम बहुत अच्छी लगती हो...बहुत बहुत प्यार करता हूँ तुम्हें ...और ये भी कोई बार बार कहने की बात है..." सन्दर्भ ने बहुत सावधानी से जवाब दिया की कहीं ये महीने दो महीने में एक बार फूटने वाला बम आज आग न पकड़ ले

"और क्या....पहले तुम बात बात में...मुझ जताते रहते थे..छोटे छोटे से सरप्राइज दिया करते थे...पर अब सब....." व्याख्या ने एक गहरी सी सांस छोड़ी

"अभी भी उतना है...(फिर तुरंत सोचता है नहीं सिर्फ इससे काम नहीं चलेगा तो जल्दी से आगे बोलता है) इंफैक्ट अब तो पहले से भी बहुत ज्यादा करता हूँ....पर क्या करूँ ऑफिस का काम .....और लिखने में ही इतना थक जाता हूँ कि..."

व्याख्या उसकी बात काटते हुए बोली "नहीं मैं जानती हूँ अब मैं पहले जैसी नहीं रही...मोटी हो गयी हूँ...सारा चार्म भी खो गया है कहीं ..बस एक घरेलू भद्दी आंटी सी हो गई हूँ..."

"अरे तो भाई व्याख्या तो लंबी चौड़ी ही अच्छी होती है" संदर्भ ने बात को थोड़ा हल्का करने के लिए मजाक किया

हूँ...तो तुम भी यही कह रहे हो...कि मैं मोटी हूँ?.....अच्छा ये बताओ....वो सामने वाले घर में जो नई किरायेदार आई है उसे देखा है?"

"कौन वो प्रस्तावना की बात कर रही हो क्या?"....हाँ ...देखा है ..पर उससे इस बात का क्या मतलब ?"

"ओह्ह्ह ..मतलब नाम भी जानते हो उसका....क्या बात है वाह...बहुत बढ़िया .....हाँ हाँ खूब देखा करो उसे...."

"अरे यार...ये क्या बात हुई चलो अब सो जाओ...सुबह जल्दी उठना है" सन्दर्भ अब झल्ला गया और टेबल लैंप बंद करके दूसरी तरफ करवट ले के सोने लगा

उधर व्याख्या सोचती रही....प्रस्तावना कितनी फिट है,छरहरी ,मॉडर्न नवयौवना है फिगर तो ऐसा है की कोई मर्द ताकता रह जाये और ऊपर से फिटिंग के चुस्त मोडर्न ड्रेस उफ़....कभी वो भी तो ऐसी ही थी...तभी तो सन्दर्भ उसपे मर मिटा था...पर अब दो बच्चों के बाद कैसी बेकार सी हो गई है...सन्दर्भ अब उसपे ध्यान तक नहीं देता..और ....आज तो उसने उसे प्रस्तावना को गौर से देखते भी देख लिया था ...हाँ देखेगा ही...इतने छोटे और टाइट कपड़े जो पहनती है ..सारे मर्द एक जैसे होते हैं ......... इसी वजह से उसका मन आज कहीं नहीं लग रहा ....सन्दर्भ उससे जरा सी बात कर लेता तो मन हल्का हो जाता है...पर वो भी मुंह फेर के सो गया

"सन्दर्भ...काश तुम समझ पाते कि ...मैं भी कभी प्रस्तावना थी पर तुम्हारे लिए ...अपने घर अपने बच्चों के लिए धीरे धीरे मैं व्याख्या बन गई....और अपने को पूरा बदलने के बाद आज भी...व्याख्या जानी जाती है सन्दर्भ के नाम से....किसकी व्याख्या है...सन्दर्भ देखो...और तुम भाग रहे हो नई नवेली प्रस्तावना के लिए..... और ऐसे ही सोचती हुई.. तकिये को नम करते करते कब वो...सो गई उसे खुद पता नहीं चला।

'प्रस्तावना' चाहे जितनी अच्छी हो पर 'व्याख्या' ही 'सन्दर्भ' को पूर्ण करती है और उससे ही निष्कर्ष प्राप्त होता है ।

-तुषारापात®™

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